फलक के सितारे
“फ़लक के सितारे”
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कल तक थे वो आँगन के सितारे
आज जा बैठे हैं वो दूर फ़लक पे
टिमटिमा रहे हैं वो बन के सितारे
तभी तो हैं वो फ़लक के सितारे ..,
आई थी बन सितारा वो-आँगन में
हमारे ,
और ….,
नूर बन कर छा गई थी
वो दिल में हमारे
वो ….,फ़लक के सितारे ,
वक्त गुजरता गया धीरे धीरे
चमक भी मध्यम हुई धीरे धीरे
फिर एक दिन जा पहुंची फ़लक पे
वो ..,धीरे धीरे छोड़ कर आँगन मेरा
टिमटिमा रहे हैं वो बन फ़लक के सितारे
वो …….,फ़लक के सितारे ….||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब
©स्वरचित मौलिक ,रचना
21-02-2024