फर्जी
वो मुझे राजा बनाना चाहते है,
खामखां ख़्वाजा बनाना चाहते हैं।
जानता हूं उनके नापाक इरादों को,
वो वसूलों का मेरे बाजा बजाना चाहते है।।
कितनों को बैठाया तख्त पर बस पेट खातिर,
अब मुझे वो मुफ्त का मोहरा बनाना चाहते हैं।
वो रहें खुशहाल उनकी जहनीयत जैसी भी हो,
हम वसूलों को मगर जन्नत से ज्यादा चाहते हैं।।
देश भूखा था मगर एहसास न था,
भ्रम नहीं था पर व्रत त्याग व तप भाव था।
जबसे आए कीड़े फरेबी जमुरियत के देश में,
बस पेट का प्रस्ताव “संजय”, वसूल न ही गांव था।
जय हिंद