फर्क़ है
फर्क़ है
श्रीराम की जयकार करने में,
और अपने तात की आज्ञा शिरोधार्य करने में ,
और सबके हित के कार्य करने में,
फर्क़ है ।।1।।
फर्क़ है
भरत को राम का प्रिय भाई बताने में,
और अपने बड़े भाई को सताने में ,
और छोटे भाईयों पर हक़ जताने में,
फर्क़ है ।।2।।
फर्क़ है
‘सिया आदर्श नारी थीं’ सिखाने में,
और अपने अंगों को दिखाने में,
और पापी के महल को छोड़,
वृक्ष के नीचे जीवन बिताने में,
फर्क़ है ।।3।।
फर्क़ है
विभीषण को कभी गद्दार कहने में,
और अपने बंधु के अत्याचार सहने में,
और विनाश की ओर जाने वाले के साथ रहने में,
फर्क़ है ।।4।।
फर्क़ है
भरे बाज़ार में रावण जलाने में,
औ’ पराक्रम से कैलाश-सा पर्वत उठाने में,
और अपनी बहन के सम्मान हेतु, स्वयं भगवान से लड़ जाने में
फ़र्क है ।।5।।
फर्क़ है
प्रभु राम की गाथायें गाने में ,
और पुरुषोत्तम सदृश जीवन बिताने में,
और प्रभु श्रीराम -सी मर्यादा निभाने में ,
फर्क़ है ।।6।।
— सूर्या