इतिहास के शहर
अच्छे लगते हैं मुझे
इतिहास के शहर,
खींचती हैं अपनी तरफ,
वो खामोश अट्टालिकाऐं
वो मौन पत्थर,,
जिन्हें तराशा गया था कभी
जतन से…
लिखी गई थी जिनपर,
प्यार की इबारत,,,
और
जज़्ब हैं जहाँ
अनगिनत कहानियां,
वक्त की गर्त से झांकते झरोखे
गवाही देते से प्रतीत होते हैं,,,
खण्डहरों मे तब्दील
ये शहर कितना आबाद था,,
और
इतिहास का वो शहर
फिर बसने लगता है
ज़हन मे,,,
झरोखों से नज़र आता है
बिल्कुल साफ़,,
वो नींव का पत्थर,,
जो लाख कोशिशों के बाद भी
रौंदा नहीं जा सका,,,,,
नम्रता सरन “सोना”