फरिश्ता से
दुआ कर लो कबूल
दो ना ये दर्द का शूल
मुद्दतों से पड़ी हूं।
अब तक अपने से ही लड़ी हूं।
गुनाहगार ना होकर भी सजा पाते हैं।
इश्क की दास्तान हमेशा नया पाते है।
मेरे दिल की ख्वाहिश सुनने वाले।
अपनी रज़ा देख पाते,
मेरे तकदीर में क्या है?
तु तो फरिश्ता है।
तेरा -मेरा ही गहरा रिश्ता है ।
कैसे कहूं तुझको
तेरे अब्र ( घटा ) से मुझकों राहत मिलती हैं।
मिलती है सच्चाई
ए दुनियाँदारी है।
खाक यहां कि हर सौगात हैं,
बस मिल जाती है जिसे इश्क तेरा
वो दुनिया में भी नायाब हैं।
– डॉ. सीमा कुमारी, बिहार, भागलपुर, दिनांक-29-4-022की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।