फन्दा
कुछ ख़ास फ़र्क
नही पड़ा
तुम्हारे चले जाने से
पेड़ों पर लगे छोटे आम
अब थोड़े बड़े होकर
पीले होने की
तैयारी में हैं
नन्ही चिड़िया आकर
फुदक फुदक कर
अभी भी थोड़ा सा
कुतर जाती है उन्हें
वैसे ही
छत पर रखे
गमले में अब भी रोज़ सुबह
चटक लाल पोशाक
पहन कर
गुलाब हँसता हुआ
झूलने लगता है
डाली पर
हाँ बस दिन भर के बाद
ख़ुद ही बिखर जाता है
जिसे तुम सुबह होते ही
ले जाते थे
उसे देने को,,
कुछ ख़ास फ़र्क नहीं है
जाने से तुम्हारे
अम्मा आज भी
दो रोटियाँ
ज्यादा ही सेंक लेती है
सूख जाती हैं जब
ये इंतजार में तुम्हारे
तब थोड़ी सी
आँखों की नमी
चुपड़ देती है
और
सरका देती है
धीरे से अपने
कस कर बंद किये गए
कलेजे के एयर टाइट
डिब्बे में,
कुछ ख़ास फ़र्क नहीं है
जाने से तुम्हारे
पिता सूखी डाली की मानिंद
थोड़ा सा झुके कंधों को
सीधा रखने की
तमाम कोशिशों में
सींचते रहते हैं
कोरों के बहते पानी में
मुस्कान की थोड़ी सी
खाद मिला कर
डर है उन्हें कि
ज्यादा सूख कर
टूट न जाये,
कुछ खास फ़र्क नहीं है
तुम्हारे जाने से
आज भी
टकटकी लगाए
ताक रही है दरवाज़े पर
वह सीट जिसके लिए
अक्सर लड़ जाते थे तुम
अपने ही दोस्तों से
हाँ
कुछ फ़र्क पड़ा है
तो बस
केवल उस रस्सी के टुकड़े को
जिसे तुम्हारे गले से
खोल कर
पुलिस ले कर गयी थी
अब शायद मिले उसे
उम्र क़ैद
ताकि
कोई भी राखी
कमरे के कोने में पड़ी
सिसकती न रहे,,,