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7 Oct 2021 · 1 min read

फगुआ

आई है फगुनमा आई फगुआ रे सखि।
कोई करे बरजोरी आई फगुआ रे सखि।
सैयां मिले तो खूब नहीं तो यार धरे मोरी बैयां।
बड मुंहजोरी यह यौवनमा पकडूं मैं तेरी पैयां।
अंर्गअंग तपता है सखि री जैसे नदिया रेत।
रतिया खाये कार्टकाट मोहे जैसे कोई प्रेत।
राधा के संग श्याम खेलते जैसे होली आज।
वैसे ही मेरे संग सजनमा खेले होली आज।
अंर्गअंग मेरा रंग दे रंग से मुख पे मले गुलाल।
तपन बदन का चूर्सचूस ले अंकित कर दे भाल।
कब फिर अईहैं जानी न सखिया ये होली के रात।
ढोर्लमजीरा. तार्लझाल फिर मनमा के सौगात।
यह संदेशा दे आओ उनको फगुआ का संदेश।
परदेशी हर परदेशी से कहियो आ जाये देश।
मदमाती यह हवा और यह फिजां हो रही मस्त।
मेरे तन के अन्दर्रबाहर कोई लगा रहा गश्त
अरूण प्रसाद
मार्च 1. 2007

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 1 Comment · 727 Views
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