मारे ऊँची धाक,कहे मैं पंडित ऊँँचा
ऊँचा मुँह कर बोलते, *गुटखा खा श्रीमान।
गाल छिले, फिर भी फँसे, बहुत बुरा अभिमान ।।
बहुत बुरा अभिमान ज्ञान की त्यागी बातें।
निज मन के बस हुए,खा रहे दुख की लातें।।
कह “नायक” कविराय विश्व के कर में कूँचा।।
मारे ऊँची धाक, कहे मै पंडित ऊँँचा।।
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*गुटखा= कटी सुपारी,कत्था,तम्बाकू एवं चूना का मिश्रण, जो पैक किया हुआ बाजार में मिलता है|,
(एक नशीला मिश्रण)