पढ़े लिखे नादां
अक्सर मुझसे पढ़े लिखे नादां पूछते हैं,
क्यूँ हो बेचैन, परेशां पूछते हैं?
मैं तो मस्त मिथिलेश हूँ , धुन के पक्के;
पर वो, मेरा जाति और खानदान पूछते हैं .
मैं तो खुश हूँ कि मैं हिन्दुस्तानी हूँ ,
पर वो, मेरा क्षेत्र और जुबान पूछते हैं.
मेरा आगाज और अंजाम दोनों ही भारत है,
पर वो, मेरा धरम और ईमान पूछते हैं.
मैं तो बस अपने भाव के परिंदों को
कागज़ की छत पे उतार देता हूँ,
पर वो, मेरी शैली और ज्ञान पूछते हैं.
मैं तो बेबाकी से अपनी बात रखता हूँ,
पर वो, “किसकी है फ़रमान” पूछते हैं.
चोट लगी है तो खून भी तो बहा होगा,
पर वो, “कहाँ है चोट का निशान” पूछते हैं.
मां भारती से अलहदा कोई जाति, कोई धर्म नहीं,
पर वो, “भीम या मीम” पूछते हैं.
यह देश जितना उनका है, मेरा भी तो है,
पर वो, “पास की राष्ट्रीयता की इम्तेहान” पूछते हैं.
ये जाति ये धरम जो भी है,आदमी से कमकर है,
पर वो, मेरा अल्लाह और भगवान पूछते हैं.