#प्रेरक_प्रसंग-
#प्रेरक_प्रसंग-
■ “भय” भी अच्छा है।।
【प्रणय प्रभात】
मानवीय जीवन तमाम सारे भावों का समुच्चय है। इनमें अच्छे व बुरे दोनों तरह के भाव सम्मिलित हैं। इन्हीं में एक है “भय”, जिसे प्रायः बुरा माना जाता है। जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। भय की भी अपनी एक भूमिका है। जिसके लिए जीवन में एक मात्रा तक उसका होना आवश्यक है। जो इस बात को ग़लत मानें, उनके लिए यह छोटा सा प्रसंग पर्याप्त है। जो जीवन में थोड़े-बहुत डर की अनिवार्यता को रेखांकित करता है-
किसी शहर में एक बार एक प्रसिद्ध विद्वान् “ज्योतिषी का आगमन हुआ। माना जा रहा था कि उनकी वाणी में सरस्वती स्वयं विराजमान है। वे जो भी बताते हैं, सौ फ़ीसदी सच साबित होता है। इस बारे में जानकारी मिलने पर लाला जी भी अपना भाग्य व भविष्य जानने के लिए उक्त विद्वान के पास जा पहुँचे। निर्धारित 501 रुपए की दक्षिणा दे कर लाला जी ने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाते हुए ज्योतिषी से पूछा –
“महाराज! मेरी मृत्यु कब, कहॉ और किन परिस्थितियों में होगी?”
ज्योतिषी ने लाला जी की हस्त रेखाऐं देखीं। चेहरे और माथे को कुछ देर अपलक निहारते रहे। इसके बाद वे स्लेट पर कुछ अंक लिख कर जोड़ते–घटाते रहे और फिर गंभीर स्वर में बोले –
“जजमान! आपकी भाग्य रेखाएँ कहती है कि जितनी आयु आपके पिता को प्राप्त होगी, उतनी ही आयु आप भी पाएँगे। वहीं जिन परिस्थितियों में जिस जगह उनकी मृत्यु होगी, उसी स्थान पर ओर उसी तरह आपकी भी मृत्यु होगी।”
यह सुनते ही लाला जी की धड़कनें बढ़ गईं। वे बुरी तरह भयभीत हो उठे। उनका चेहरा पीला पड़ गया और शरीर पसीना छोड़ने लगा। वो वहां से तत्काल उठ कर चल पड़े।
लगभग एक घण्टे बाद लाला जी वृद्धाश्रम से अपने वृद्ध पिता को रिक्शे में बैठा कर घर की ओर लौटते दिखाई दिए। तब लगा कि जीवन में भय की भी कुछ न कुछ अहमियत तो है ही। यह प्रायः हमें ग़लत मार्ग पर चलने व ग़लत कार्य करने से रोकता है। भय को एक तरह से जीवन शैली व आचार, विचार और व्यवहार का सशक्त नियंत्रक भी माना जा सकता है।
इस तरह समझा जा सकता है कि डर कतई बुरा नहीं। बशर्ते वो हमें बुरा करने से रोकता हो। फिर चाहे वो भय धार्मिक हो, सामाजिक हो, पारिवारिक हो या वैधानिक। भय का अभाव किसी इंसान को मात्र निर्भय ही नहीं उद्दंड, अपराधी व निरंकुश भी बनाता है।
विशेष रूप से आज के युग में, जहां देश-काल और वातावरण में नकारात्मकता का प्रभाव सकारात्मकता से कई गुना अधिक है।।
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