प्रेरक संस्मरण
2001 की बात है मुझे स्काउट मास्टर की बेसिक कोर्स की ट्रेनिंग के लिए नौरोजाबाद जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ | कैंप का पहला दिन था | शाम के समय एक प्रतिभागी की पेंट की मोहरी से घुटने तक सिलाई खुल गयी | आसपास कोई दुकान भी नहीं थी | चिंता की लकीरें उसके चहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थीं | शायद उनके पास एक ही पेंट थी | मेरी एक आदत है कि जब भी कहीं जाता हूँ अपने साथ सुई और धागा लेकर जाता हूँ | मुझे पता चला तो मैंने उनको ढांढस बंधाया और कहा कि आप चिंता न करें मैं आपकी पेंट हाथ से सिल दूंगा | उन्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था |
मैंने उनसे पेंट ली और करीब आधे घंटे के भीतर उन्हे पेंट सिलकर दे दी | उनके आश्चर्य की सीमा न रही कि पेंट हाथ से सिली गयी पर देखने में कोई कह नहीं सकता था कि यह हाथ से सिली है | उन्होंने मेरा शुक्रिया अदा किया और उस दिन से आज तक हम एक अच्छे दोस्त हैं | उनका नाम अनुराग चौरसिया है | चूंकि मेरे घर में सिलाई का काम होता था सो मुझे पता था कि कपड़े को जरूरत पड़ने पर हाथ से भी सिला जा सकता है | अनुराग जी आज भी उस घटना को याद करते हैं | मेरे हाथ से सिली गई उस पेंट को उन्होंने कई वर्षों तक पहना l आज भी हम एक अच्छे मित्र हैं l