Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Mar 2021 · 3 min read

प्रेरक प्रसंग

मंदिर की सीढ़ियों में बैठे एक वृद्ध को मैंने देखा। मुझे वह वृद्ध कुछ औरों से अलग प्रतीत हुआ। उसकी आंखों में अजीब सा आकर्षण था ।
अतः मैंने उससे कुछ बात करने के लिए उससे पूछा आप कहां रहते हो ? ,उसने कहा बेटा मेरा घर कहां है, दर बदर भटकता फिरता हूं ,जो भी कोई देता है उसे खाकर जी रहा हूं , आप जैसे कुछ भले आदमी कभी कुछ खाना दे जाते हैं ,उसे खाकर जहां जगह मिल जाती है वहीं पड़ कर सो जाता हूं ।
मेरा भी एक घर परिवार था मेरा एकमात्र पुत्र पढ़ा लिखा इंजीनियर है, अमेरिका में अच्छी नौकरी कर रहा है , मैंने अपने सामर्थ्य अनुसार उसे पढ़ा लिखा कर उच्च शिक्षा हेतु विदेश भेजा था , उसने वहां उच्च शिक्षा प्राप्त कर वहीं नौकरी कर ली , पहले तो साल में एक बार आकर हम लोगों का हाल-चाल पूछ कर खर्चे के लिए पैसे देकर चला जाता था ,परंतु बाद में उसने आना बंद कर दिया। उसके मित्रों से पता लगा कि वहीं उसने अपने साथ कार्यरत लड़की से प्रेम विवाह कर लिया है। जिसकी उसने हमें कोई सूचना नहीं दी। मेरी पत्नी को इसका बहुत दुख हुआ और वह इस शोक में मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गई , पुत्र शोक में उसका स्वास्थ्य गिरने लगा , और वह बीमारी ग्रस्त होकर स्वर्ग सिधार गई। उसकी मृत्यु पर वह अकेला आया था , और उसने मुझसे कहा कि आप इतने बड़े पुश्तैनी मकान में कैसे अकेले रहेंगे ? इसे बेचकर आपके रहने के लिए अन्यंत्र व्यवस्था कर देता हूं।
उसने कहा मैं आपको अपने साथ ले नहीं जा सकता क्योंकि आपकी वृद्धावस्था के कारण आपको विदेश में रहने का वीजा नहीं मिलेगा आपको यहीं पर रहना होगा, क्या करूं? यह मेरी मजबूरी है । इस प्रकार उसने मुझे शब्दजाल में फंसाकर पुश्तैनी मकान बेचने के लिए मजबूर कर दिया। उसने मकान बेचकर उसमें से कुछ पैसे वृद्धाश्रम में जमा कर मुझे उसमें भर्ती कर दिया। मैंने कुछ साल वृद्धाश्रम में काटे ,परंतु वहां के संचालकों का व्यवहार ठीक नहीं था। एक दिन उन्होंने कहा तुम्हारे बेटे ने पैसे भेजना बंद कर दिए हैं , तुम्हें यहां से जाना होगा और उन्होंने मुझे वृद्धाश्रम से निकाल दिया। तब से मैं सड़क पर भटकता फिर रहा हूं ।
मैं एक प्राइवेट कंपनी में मुलाजिम था , मैंने बड़ी कठिनाई से अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर लायक बनाया , परंतु उसने अपने स्वार्थवश मुझे यह दिन दिखाया। अब मुझमें जीने की कोई चाह बाकी नहीं है , मैं किसी तरह मौत के इंतजार में दिन गुजार रहा हूं।
उसकी आपबीती सुनकर मेरी आंखें भर आयीं , मैंने सोचा आदमी स्वार्थपरक होकर कितना गिर गया है ,जो अपने ही माता पिता जिन्होंने उसे पाला पोसा बड़ा किया , उन्हें जीवन के इस पड़ाव में अपमानित , आत्मग्लानि के क्षोभयुक्त कष्ट भोगने के लिए छोड़ दिया है।
उपरोक्त प्रसंग से वर्तमान में व्याप्त संवेदनहीन नैतिक एवं सामाजिक पतन की पराकाष्ठा का भाव प्रदर्शित होता है। आधुनिक समाज में ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण मिल जाएंगे जहां संताने अपने अभिभावकों को उनके हाल में छोड़ कर विदेशों में जाकर बस जातीं हैं।
यदि गंभीरता से विचार किया जाए इसका मुख्य कारण धन कमाने की अंधी दौड़ है जिसमें अंतरंग संबंधों और रिश्तो तक को तिलांजलि दे दी जाती है।
आधुनिक भौतिकवाद के चलते हमने अधिक से अधिक धन कमाने को जीवन में सफलता का लक्ष्य मान लिया है , परंतु हम यह भूल जाते हैं कि इस प्रक्रिया में हम अपने हितचिंतकों के प्रेम एवं सद्भावना से कितने दूर हो जाते हैं।

Language: Hindi
2 Likes · 8 Comments · 293 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Shyam Sundar Subramanian
View all
You may also like:
विरह–व्यथा
विरह–व्यथा
singh kunwar sarvendra vikram
मजबूरी
मजबूरी
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*राज सारे दरमियाँ आज खोलूँ*
*राज सारे दरमियाँ आज खोलूँ*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
*सर्वप्रिय मुकेश कुमार जी*
*सर्वप्रिय मुकेश कुमार जी*
Ravi Prakash
मां की कलम से!!!
मां की कलम से!!!
Seema gupta,Alwar
लोकतंत्र
लोकतंत्र
करन ''केसरा''
तुलना करके, दु:ख क्यों पाले
तुलना करके, दु:ख क्यों पाले
Dhirendra Singh
*कुल मिलाकर आदमी मजदूर है*
*कुल मिलाकर आदमी मजदूर है*
sudhir kumar
उड़ान ~ एक सरप्राइज
उड़ान ~ एक सरप्राइज
Kanchan Khanna
कैसी लगी है होड़
कैसी लगी है होड़
Sûrëkhâ
प्लास्टिक की गुड़िया!
प्लास्टिक की गुड़िया!
कविता झा ‘गीत’
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
Shekhar Chandra Mitra
जुनून
जुनून
अखिलेश 'अखिल'
जब कोई शब् मेहरबाँ होती है ।
जब कोई शब् मेहरबाँ होती है ।
sushil sarna
पेड़ पौधे से लगाव
पेड़ पौधे से लगाव
शेखर सिंह
ज़िंदगी को अगर स्मूथली चलाना हो तो चु...या...पा में संलिप्त
ज़िंदगी को अगर स्मूथली चलाना हो तो चु...या...पा में संलिप्त
Dr MusafiR BaithA
समय के साथ
समय के साथ
Davina Amar Thakral
"शिक्षा"
Dr. Kishan tandon kranti
“हिचकी
“हिचकी " शब्द यादगार बनकर रह गए हैं ,
Manju sagar
3509.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3509.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
थकावट दूर करने की सबसे बड़ी दवा चेहरे पर खिली मुस्कुराहट है।
थकावट दूर करने की सबसे बड़ी दवा चेहरे पर खिली मुस्कुराहट है।
Rj Anand Prajapati
मां तुम्हारा जाना
मां तुम्हारा जाना
अनिल कुमार निश्छल
लिख लेते हैं थोड़ा-थोड़ा
लिख लेते हैं थोड़ा-थोड़ा
Suryakant Dwivedi
अनजान बनकर मिले थे,
अनजान बनकर मिले थे,
Jay Dewangan
तेरा-मेरा साथ, जीवन भर का...
तेरा-मेरा साथ, जीवन भर का...
Sunil Suman
मैं जिन्दगी में
मैं जिन्दगी में
Swami Ganganiya
!! गुजर जायेंगे दुःख के पल !!
!! गुजर जायेंगे दुःख के पल !!
जगदीश लववंशी
ऐसे थे पापा मेरे ।
ऐसे थे पापा मेरे ।
Kuldeep mishra (KD)
हज़ारों चाहने वाले निभाए एक मिल जाए
हज़ारों चाहने वाले निभाए एक मिल जाए
आर.एस. 'प्रीतम'
*****हॄदय में राम*****
*****हॄदय में राम*****
Kavita Chouhan
Loading...