प्रेरक प्रसंग
एक शहर मे चार मित्र रहते थे।
उन्होने सोचा कि चलो दुनिया घूम कर आते हैं।
परन्तु उन्होने यह निश्चय किया कि सभी अलग अलग दिशाओं मे जायेगें और वापस आने पर अपने अनुभव सुनायेगें।
पहला मित्र जो साहूकार था उत्तर को गया वहाँ पर जंगल से गुजरते उसने देखा कि एक वृक्ष पर बहुत मीठे फल लगे हुए थे।
उसने उन फलों को खाया तो वे बहुत स्वादिष्ट और मीठे थे।
उसने सोचा कि इन फलों को बेचकर धन कमाया जा सकता है।
उसने उन फलों तोड़कर इकट्ठा किया और उन्हे शहर मे जाकर बेचकर धन कमाया।
दूसरा मित्र जो क्षत्रिय था दक्षिण दिशा को गया वहाँ उसे एक बहुत घना जंगल मिला जो खूँखार जंगली प्राणियों से भरा था।
उसने सोचा यदि वह शेर का शिकार कर उस देश के राजा को भेंट स्वरूप दे सके तो राजा उसे काफी धन ईनाम में दे सकते है।
अतः उसने बड़ी बहादुरी से शेर का शिकार कर उसे राजा को भेंट मे देकर उसे बहुत धन प्राप्त हुआ।
तीसरा मित्र जो एक मछुआरा था पूर्व दिशा की ओर गया वहाँ उसे एक नदी मिली जिसमे बहुत मछलियाँ थी।
उसने सोचा यदि वह मछलियाँ पकड़कर बाजार मे बेच दे तो काफी धन कमा सकता है।
उसने बहुत सारी मछलियाँ पकड़ीं और उन्हे बाजार मे बेचना शुरू कर दिया।
परन्तु उसे उतनी सफलता नही मिली। तभी मछलियाँ बेचते हुए उसने जब एक मछली को काटा तो मछली के पेट से एक चमकती हुई हीरे की अँगूठी निकली।
तब उसे लोगों से पता चला कि यह वही अंँगूठी है जो उस देश की राजकुमारी के नदी में नहाते समय नदी में गिरकर खो गयी थी।
जिसको ढूँढकर लाने पर राजा द्वारा पुरस्कार देने घोषणा की गयी थी।
मछुआरे मित्र ने वह अँगूठी राजा को लौटा दी। अँगूठी पाकर राजकुमारी बहुत प्रसन्न हो गयी।
राजा ने मछुआरे का आदर सत्कार कर बहुत धन पुरस्कार मे देकर विदा किया।
चौथा मित्र जो एक ब्राह्मण था उसने पश्चिम दिशा को प्रस्थान किया वहाँ उसको एक नगर मिला।
वहाँ राजा की मुनादी द्वारा की जा रही घोषणा सुनायी दी कि दूर देश से एक विद्वान पधारे हैं उन्हे जो व्यक्ति शास्त्रार्थ मे पराजित करेगा उसे राजसम्मान और अपार धन से पुरस्कृत किया जायेगा।
परन्तु हारने पर कारावास का दण्ड भोगना पड़ेगा।
उस ब्राह्मण मित्र जो बहुत ही गरीब परन्तु बुद्धिमान था।
सोचा क्यों न प्रयत्न किया जाये।यदि भाग्य ने साथ दिया तो कष्टप्रद दिन फिरेंगे अन्यथा भूखे मरने से कारावास मे भोजन तो मिलेगा।
उसने अपने आत्मविश्वास को जगाया और विजयी होने का दृढ़ निश्चय लेकर राजा की राजसभा मे उस विद्वान से शास्त्रार्थ हेतु उपस्थित हो गया।
उसने अपने विवेक से अपना तर्क प्रस्तुत कर उस विद्वान के द्वारा दिये सभी तर्कों का अकाट्य उत्तर प्रस्तुत कर विजयी घोषित हुआ।
राजा उसकी बुद्धिमता से बहुत प्रभावित हुआ।
और उसने अपनी घोषणानुसार अपार धन देकर उस चौथे ब्राह्मण मित्र को सम्मानित किया।
अतः उपरोक्त कथा से यह स्पष्ट है कि मनुष्य के संस्कार ,आचार ,विचार उसके व्यवहार को प्रभावित करते हैं । जिसके फलस्वरुप उसे जीवन निर्वाह की प्रेरणा मिलती है।