प्रेयसी
ये तुम्हारी स्नेहिल सी मुस्कान
होंठो पर सज रही गहने की तरह
और पावों में झूलती वो पायल
बज रही मधुर सुरताल की तरह
माथे पर तेरे वो सुनहरी सी बिंदिया
चम चम चमक रही सूर्यकिरण सम
काली घटा सी घनी हैं ये जुल्फें तुम्हारी
इनके अंधेरों में कहीं खो न जाएं हम
वो लड़कपन खो सा गया है यौवन तले
संग जिसके बचपन गुजारा था मिल कर
एक बार फिर से लौट कर आ जाओ
छुपम छुपाई धप्पा बोल लें संग मिल कर
कर के हाथ पीले बैठ कर डोली में
चल दोगी एक दिन पिया घर दूर कहीं
यादें छोड़ कर बचपन की तड़पाने को
देखते ही रह जाएंगे तुम्हें हम बैठे यहीं