प्रेम
प्रेम रससँ तनिको
भीजि नञि भीजि
मुदा ओ
परिणयक सूत्रमे
बान्हल बन्हन नै टुटै
जेकर साक्षी बनल
गामक लोक गहबरक माँ भगवती
मैथिली प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूपेन भऽ
सदा सुहागन कए आशीष देलि
तहिये सेँ तोरे लेल
जिनगीमे जीबैत हियौ
मुदा तोरासँ
छी आस रखने
माय बाबू आ दूलरी के
नै कखनो कनबिहें
देखऽ अबनी सालमे
आइबो आपनो देस
छुअ कऽ लेब चुमि माटिकेँ
जाहि माटि से रहैछी बड्ड दूर
आपनो गाममे
एक ओर पीपर रऽ गाछ
दोसर ओर आगनमे
तुलसी आ पुष्पक फुलवारी
चहुँदिस जयसै महादेव बौध्द विराजित
ओहन कतह पावन धाम
संस्कृति भाषा संस्कार
अंतिम क्षण धरि
इयाद देखाबैत अछि
हम्मे छी संग तोहर
आओर हेहो अर्धांगिनी
तोय छऽहो मोर आँगन के संस्कार
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य