प्रेम
नन्ही सी मासूम कली वह
गुड़िया जैसी भोली भाली
बात बात पर लड़ती मुझसे
हंसती रोती शोर मचाती
कभी झनककर दूर हो जाती
कभी चहक कर पास वो आती
छिना झपटी करती मुझसे
बात बात पर लड़ती मुझसे
फूलों से तितली को पकड़ के
कभी कभी ललचाती थी
कलियों पर बैठे भँवरे को
देख कभी डर जाती थी
अर्पिता था नाम वह लड़की
साथ जो मेरे पढ़ती थी
छूटटी के दिन ना मिलने पर
अक्सर मुझसे लड़ती थी
अब भी उसकी याद के साये
मेरे साथ में रहते हैं
उम्र चढ़ी तब जाना मैंने
प्रेम इसी को कहते हैं।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”