प्रेम
✒️?जीवन की पाठशाला ?️
मेरी कलम द्वारा स्वरचित मेरी पांचवी कविता
विषय – प्रेम
प्रेम ईश्वर है ,प्रेम शाश्वत है ,प्रेम आकार से परे है
जिस्म का प्रेम -प्रेम नहीं एक भूख एक जरुरत है
असली प्रेम है एक दुसरे के दर्द को समझना
अहसास को समझना -भावनाओं को समझना
प्रेम ईबादत है -प्रेम भक्ति है -प्रेम श्रद्धा और समर्पण है
प्रेम श्रंगार है -प्रेम रस है और प्रेम ही पूजा है
प्रेम से दो पराये -दो मुल्क एक हो जाते हैं
प्रेम गंगाजल की तरह पवित्र है
प्रेम है तो जीवन में रंग है वर्ना जीवन बेरंग है
प्रेम एक बहती हुई धारा है जिसमें नहा कर व्यक्ति पवित्र हो जाता है
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान