प्रेम
आधार छंद – लावणी /ताटंक
विधान – 30 मात्रा = 16,14 पर यति, अंत में गुरु वाचिक अनिवार्य.
प्रेम पले उन्मुक्त हृदय में,नहीं स्वार्थ का बंधन है ।
जिसके माथे पर लग जाये,सुखद सुगंधित चंदन है।
प्रेम बाँटने से बढ़ता है,जोड़ो तो घट जाता है,
निर्मल मन ही पा पाता है,ये वो अनमोल रतन धन है।
अहम बोध से ऊपर उठना, शीश झुका कर इसको पाना,
ये होता मन्नत का धागा,सांसों का स्पंदन है।
प्रेम सौंधी मृदा की खुश्बू, और खुला नभ सागर है,
ये है ऋतु बसंत- बहार की,ये ही पतझड़-सावन है।
प्राण संगिनी ,देह जीविनी,कृष्णा,राधा,मीरा है,
मुख मत मोड़ो अब तो कर लो, ये तो प्रभु का वंदन है।
प्रभु की सबसे सुखद भावना,इस जग के कण- कण में है,
प्राण तत्व नौरस व्यंजन है,प्रेम बिना मरु जीवन है ।
बिना शर्त जो प्रेम निभाता,करता सर्व समर्पण है,
प्रेम कोई विज्ञान नहीं है,यह अनुभव का दर्शन है।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
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