प्रेम
-तिलका छंद
★★★★★★
जब प्रेम किया।
बस प्रेम किया।
मुख मोड़ लिया।
जग छोड़ दिया।
मन फूल खिला।
जब प्रेम मिला।
किस राह चला।
मन ये पगला।
मुख मूक रहा।
मन कूक रहा ।
इक हूक रहा ।
सब फूक रहा।
इक जोत जला।
भय दूर चला।
हर चाह जला।
एहसास भला।
मम धर्म यहीं।
सत कर्म यहीं।
कुछ शेष नहीं।
मन लेश नहीं।
तन शुद्ध किया।
मन बुद्ध किया।
जग जीत लिया।
जब प्रीत किया।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली