प्रेम
दिल से दिल मिल गया है जब से
जीवन का प्यारा गीत मधुर हो गया
निर्जन बंजर विरान था मेरा जीवन
प्यार पा कर तेरा बागमबग हो गया
वर्षो से तड़फता था दिल प्रेम तराने को
प्रेमवर्षा की बूंदों से दिल तरतर्रार हो गया
कायनात पर नियामत है राग प्रणय का
वैराग्य भरा मन मेरा अनुरागी हो गया
रंगों से भरी धरती हेत श्रेष्ठ है सृष्टि फर
रंगहीन था जो जीवन रंगलीन हो गया
हँसी ठिठोली कहकहों भरी थी जिन्दगी
प्रेमसागर में डूबकर प्रेमिल सा हो गया
ना जात धर्म देखे ना ही देखे रंक राजा
प्रेम की स्नेही भाषा दिल स्नेहिल हो गया
प्रेम सजा देता हैं, आनन्दित भी होता है
जिस रूप में भी हो प्रेम अमृत हो गया
जिस तन लागे वो जाने क्या होता है प्रेम
प्रेम अग्नि में जो जले प्रेम बेदर्दी हो गया
दीवानों सा नहीं जीवन मोह माया से परे
प्रेमधन से बड़ा नही धन, धनाढय हो गया
प्रेम अंधा होता है कुछ दिखाई नहीं देता
आँखों का आँखों से नजराना हो गया
दिल से दिल मिल गया है जब से
जीवन का प्यारा गीत मधुर हो गया
सुखविंद्र सिंह मनसीरत