प्रेम
ऐसे छलता प्रेम नित,मृगजल-सा आभास।
सूखे अधरों पर पड़े, बढ़े हृदय की प्यास।।
बढ़े हृदय की प्यास, जोड़ते झूठी आशा ।
कितने भी हो दूर, आस में जीवन प्यासा ।
है रहस्य अति गूढ़ ,प्रेम सागर के जैसे।
पाना,खोना सत्य,नहीं मिलते हैं ऐसे।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली