प्रेम
प्रेम क्या है?
समर्पण मात्र या अर्पण।
प्रेम भावों का तीव्र वेग है।
आता है और कुछ पल ठहरता है ।
डूब गया जो इस ठहराव में।
बह गया जो इस वेग में।
गहराई तक अनन्त की।
अर्पण उसी को फिर।
प्रेम दबाव है या स्वीकृति?
दबाव नही शायद।
एक मौन स्वीकृति है ये तो।
डर न संकोच जहाँ।
बस स्नेह हो जहाँ।।
तेरा-मेरा खत्म हुआ।
अपना अस्तिव भी खत्म हुआ।
प्रेम का दरिया पार कर।
डूब गया जो ,मिट गया जो।
अपना होश न हो जहाँ।
उसकी आगोश में सिमट गया।
उसकी सांसों में घुल गया।
मिश्री की डली सा।
बस पिघल गया।
अब कुछ उस पर न्योछावर,
फिर सब उसे ही अर्पण ।।
आरती लोहनी