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27 May 2023 · 1 min read

प्रेम

प्रेम जगत की रित यही, प्रेम भये सब होय
यह तो निर्मल धार है, शितल करे सब कोय।

निश्छल हृदय प्रेम बसे, कपट न जिसको भाय
जैसे मीरा बावरी, गिरधर हृदय समाय।

प्रेम त्याग का रूप है, सहज न इसकी राह
मीरा विष् भी पी गई, बिना किए परवाह।

भक्त और भगवान की, ऐसी ही है प्रीत।
निर्धन सुदामा को मिले, कृष्ण जैसे मीत।

– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’

Language: Hindi
305 Views

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