प्रेम हवा है मंद मंद चली
प्रेम हवा है मंद मंद चली
खिल गई है दिल की कली
मन आनंदविभोर हो गया
जब से तुम मुझको मिली
जिन्दगी बहुत उदास थी
अब जीने की आस जगी
जागती आँखों में हैं स्वप्न
जब से तुम से प्रीत लगी
नाज नखरे हैं आसमानी
दिल की है बहुत मनचली
मैं तुम से जब हम हो गए
जब से प्रेम लग्न हैं लगी
पाँव भू पर नहीं टिक रहे
हूर अंबर की जो है मिली
अक्षित रंगी सलोनी बाला
गुल सी महकती है बड़ी
शोहदापन में थे घुम्मकड़
अब लगी है प्रेम हथकड़ी
रोजे जो रखे,हो गए कबूल
जीवन में लगी है प्रेम झड़ी
सोचता हूँ कभी एकांत में
काबिल नहीं था जो मिली
प्रेम हवा है मंद मंद चली
खिल गई है दिल की कली
सुखविंद्र सिंह मनसीरत