प्रेम शांति और सामंजस्य
प्रेम शांति और सामंजस्य अपना लो
फिर अमन का चिराग जलालो
जो बीज नफरतो के बो गए
वो अब सास्वत ही सो गए
बृक्ष काँटों के हटा कर
एक फूलो का बागान लगा लो
फिर अमन का चिराग जलालो
न मेरा रब न तेरा खुदा
न मेरा जीसस न कोई भगवन
वह गुरु और परमशक्ति ने
दिया सबको एक सा ये जीवन
आओ मानवता का धर्म अपनालो
फिर अमन का चिराग जलालो
क्यों कल्पना बिनाश की
जब विकास तुमको देता है दस्तक
मिलकर आगे चल बढे
क्यों झुके तेरा भी मस्तक
आओ बंधू अब सब भुला कर
सामंज्यस्य का पथ प्रसस्थ करालो
फिर अमन का चिराग जलालो
ये जमीन के टुकड़े ने
दो भाई बांटे, बोये कांटे
जन्नत के लोगो को नसीब न
हुए जन्नत अब तलक
फिर अमन का चिराग जलालो
कुछ मुल्क घर के कलह का
उपयोग करते स्वलाभ मे
उनको न फ़िक्र कभी होगी
यहाँ परिवार संताप मे
अपनी आत्मा को जगालो
फिर अमन का चिराग जलालो
ब्यापार हथियारों का कब तक
पसीने और खून का सौदा कब तक
स्वस्थ और संपन्न दुनिया मे ये मेरा
उजड़ा हुआ घरोंदा कब तक
प्रेम शांति और सामंजस्य की
मिलकर एक मुहीम चलालो
आओ फिर अमन का मिलकर
एक चिराग जलालो