प्रेम- व्यथा
प्रेम की सीमा कोई न जाने,
अद्भुत रचा है यह संसार,
नारी हृदय प्रेम जगत है,
योग- वियोग का है श्रृंगार ,
बीज पड़े- सो फल उभरे,
मंद मंद-सी है मुस्कान,
रूप लुभावत् नैना तीखे,
वाणी जो मन बस जात् ,
रूठत् – रूठत् के मनावे,
मझधार में डूबत् जात ,
आंसू दे कर पीर बढ़ावत,
कोई न जाने मन की पीड़ा,
प्रेम कियो है पिया ने दीन्हा ,
सुख में पलभर जान पड़त न,
बिन मिलन के एहसास जगत न ।