प्रेम रत्न घन
प्रेम रत्न घन बन बरसो।।
नहीं अब मन वन तरसो।।
जब से लागी लगन
बड़े किए हैं जतन
रात फिर भी बैरन
मन नीरस क्या करसो ।।
प्रेम रत्न घन बन बरसो।।
नहीं अब मन वन तरसो।।
पिय गृह दूर बड़ो
माया राह खड़ो
खुद-खुद से लड़ो
तुम भी निकलो घरसो।।
प्रेम रत्न घन बन बरसों।।
नहीं अब मन वन तरसो।।
मरे या फिर जिय।
दृढ़ निश्चयी हिय।
तुम हमारे पिय।
ना सुनूँ कल परसों।।
प्रेम रत्न घन बन बरसों।।
नहीं अब मन वन तरसो।।
।।मुक्ता शर्मा ।।