प्रेम रंग
मनहरण घनाक्षरी
****प्रेम – रंग***
***************
डलहीज के शिकारे,
बैठे प्रीत के सितारे।
मदहोश मस्त लीन,
चढ़ी प्रेम भंग है।।
झील दरमियान में,
घिरे नेह के तूफ़ां में।
रसपान को आतुर,
हनीमून रंग है।।
जवानी की उड़ान है,
कामना का उफान है।
अंग है तने हुए से,
जीवंत उमंग है।।
दुनियादारी से परे,
यौवन से भरे भरे।
अजब सा छाया नशा,
मन मे तरंग है।।
****************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)