प्रेम रंग (कुंडलिया)
प्रेम- रंग
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प्याला पीकर प्रेम का, कृष्णा, हुई निहाल।
सुधबुध तन है खो रहा, देख मोहना हाल।।
देख मोहना हाल, अजब है प्रीत तुम्हारी।
पीकर हुई निहाल, गई मैं सुधबुध हारी।।
कहे सचिन कविराय, प्रीत है अमृत हाला।
मीरा है बेहाल, पीया जो अमृत प्याला।।
मोहन मैं जोगन बनी, किया प्रेम का पान।
मस्त मगन दर दर फिरूं, बसे तुझी में प्राण।।
बसे तुझी में प्राण, मगन हो नाचूँ गाऊं।
तुम ही प्राणाधार, मोहना तुझे बुलाऊँ।।
कहे सचिन कविराय, करो न प्रीत का दोहन।
दर्शन दो सरकार, आज आकर तुम मोहन।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’