प्रेम या खिलवाड़
घायल हुआ हिमालय फिर से,
ज़ख्म किसी और ने नहीं,
अपनों ने ही दिया,
ज़रूरत नहीं उसे वैद्य हकीमों कि,
सेवा में चाहिए फिर से उसे,
कोई राम – कृष्ण जैसा।
गंगा के धारा में भी रक्त बह रही है ,
बेचारी तड़प तड़प के आवाज़ दे रही है,
“है हिन्द देश के वासी,
कोई तो करो उपचार मेरा,
है भरत के वंशज,
कुछ तो रखो मान अपने पूर्वजों का।”
राम के धारा पे,
यह अत्याचार क्यों?
कलयुगी रावण को,
कोई तो मात दो।
कोई तो करूण पुकार सुनो मेरी,
कोई तो बचाओ मेरी बेटियों के प्राण।
कब तक उनके मृत्यु पे ,
राजनीति करोगे तुम??
अब बस बंद करो अपनी दुकान,
बचाओ बाकियों के प्राण,
कहीं फट ना जाए यह धारा,
सुन उनके पुकार,
अब तो प्रेम के नाम पे,
ना करो यह खुनी खिलवाड़।।
कोई तो बचा लो,
मेरी आंगन कि लक्ष्मी की।