प्रेम में पीएचडी
एक छोटी सी लम्बी कहानी ” प्रेम में पीएचडी ”
वर्ष २००७ की जुलाई माह का प्रथम दिन था और सोहित पहली बार अपने गाँव के स्कूल से बाहर पढने जा रहा था, उसने वीणागंज के इन्टर कॉलेज में ११वीं कक्षा में प्रवेश लिया था पास में लड़कियों का कॉलेज भी था | जैसे ही अपने दोस्तों के साथ बस में चढ़ते हुए देखा कि सुनैना के साथ कोई नयी लड़की भी बस में चढ़ रही थी |
पहली बार देखा था इस लड़की को अपने गाँव में और देखते ही अपना दिल खो बैठा सोहित | सोहित ने सुनैना से बात शुरू की तो पता लगा वो आरती थी, और गाँव की ही थी, अब तक अपने चाचा जी के पास रहकर पढ़ रही थी | सुनैना ने बताया की अब ये यही पढेगी | ये सुनकर सोहित को कुछ राहत हुई , कि चलो अब यही रहेगी, वरना चाचा जी के पास रहने की बात सुनके तो दिल ही बैठने लगा था | इस तरह ये पहली मुलाकात थी आरती और सोहित की |
सोहित तो उसको देखते ही दीवाना हो गया था | आरती देखने में कोई हूर परी तो नहीं थी, ऊँचाई सामान्य से थोड़ी सी कम थी, गोरा रंग, थोड़ी कमजोर सी थी, लेकिन उसकी हंसी बहुत प्यारी थी | जब वो हंसकर बात करती थी तो दिल खुश हो जाता था | तो इस तरह शुरू हुई एक अनजान सी प्रेम कहानी |
यूँ तो कॉलेज की क्लासेज ५वे पीरियड के बाद ही ख़तम हो जाती थी, क्योकि बच्चे सब अपने घरों को निकल जाते थे, किन्तु सोहित छुट्टी होने का इन्तजार करता, आरती से मिलने और बात करने के लिए, एक ही बस में साथ जाने के लिए | बस अड्डे पर बहुत भीड़ होती थी, क्योकि कई स्कूलों की छुट्टी एक साथ होती थी | सोहित बस में जल्दी से चढ़कर अपने साथ एक सीट आरती के लिए भी लेने की कोशिश करता था , अगर कभी सिर्फ एक सीट मिलती तो, वो आरती को बैठा दिया करता था | सोहित दिल ही दिल में आरती को चाहने लगा था , किन्तु कहने की हिम्मत नहीं कर पाता था |
इसी क्रम में सोहित की मित्रता आरती के पडोस में रहने वाले सौरभ से हो गयी, सोहित इस बात से अनजान था कि सौरभ , आरती का मुहबोला भाई है | जब सोहित को इस बात का पता लगा तो वो अपने दिल की बात बताने के में और भी हिचकिचाने लगा | समय धीरे धीरे बीतने लगा | सोहित वैसे ही संकोची स्वभाव का था, उस पर आरती के मुहबोले भाई से दोस्ती ने और संकोची बना दिया | कब दो साल बीत गए पता ही नहीं लगा , १२वीं की परीक्षा हो गयी और अब मिलने और बात करने की संभावना ख़तम हो गयी |
हाँ हर मंगलवार को वो सौरभ के साथ हनुमान जी के मंदिर में प्रसाद चढाने अवश्य आती थी | और मंदिर सोहित के घर के ही पास था | अब सोहित बड़ी ही बेसब्री से मंगलवार का इन्तजार करता था , बस उसकी एक झलक पाने के लिए | साल में एक बार होली पर सोहित एक बार उसके घर होली खेलने ज़रूर जाता था | पता नहीं वो अनजान थी सोहित के भावनाओं से या अनजान होने का नाटक करती थी | रिजल्ट आया सोहित इन्टर में फेल हो गया था , और वो पास हो गयी | वो फिर से आगे की पढाई करने के लिए अपने चाचा जी के पास शहर चली गयी | मिलने का आसरा भी ख़तम हो गया |
जब कभी वो घर आती , तो मंगलवार सोहित के लिए खुशियाँ लेकर आता | वो घर आती, मंगलवार आता, वो मंदिर आती, चली जाती | और सोहित अपने मन की बात कह ही नहीं पाता | अब दो सोहित के मित्र भी कहने लगे कि सोहित तो लगता है प्यार में पीएचडी कर रहा है, और उसको सभी डॉ. सोहित कहने लगे थे | न जाने कितने मंगलवार आये, कितनी होलियाँ आई, लेकिन सोहित के मन की बात सोहित के मन ही में रही | इस तरह ५ साल बीत गए लेकिन सोहित अपने दिल की बात नहीं कह पाया |
एक रोज सोहित ने ठान लिया कि आज तो मैं अपने मन की बात कह के ही रहूँगा | और अपने दोस्त के पीसीओ से आरती के पड़ोस में फ़ोन लगाया क्योकि आरती के घर पर फ़ोन नहीं था, और उसको वहां बुला लिया | और भूमिका बाँधने के बाद बहुत साहस बटोरकर आखिरकार आने दिल की बात बोल ही दी | आरती ने कुछ नहीं कहा , पूरी बात ध्यान से सुनती रही और अंत में सिर्फ इतना ही बोली , “सोहित तुमने बहुत देर कर दी, अगले महीने मेरी शादी है |”
इस तरह सोहित ने अपने प्यार की पीएचडी की थीसिस पूरी कर ली थी जो की रिजेक्ट कर दी गयी थी |मगर दोंस्तों ने तो डॉ. सोहित नाम दे ही दिया था |
बस इतनी सी थी प्रेम में पीएचडी की लम्बी सी छोटी कहानी |
“सन्दीप कुमार”