प्रेम…. मन
शीर्षक – प्रेम…..मन
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हमारे जीवन में स्वैच्छिक प्रेम मन हैं।
प्रेम एक मन के साथ-साथ होता हैं।
न जाने हम न तुम बस अजनबी हैं।
सच तो न कुछ आज प्रेम रंगमंच हैं।
हां हम प्रेम तो बस शब्दों में करते हैं।
जिंदगी और जीवन में प्रेम मन हैं।
सोच समझ अपनी हम जो रखते हैं।
बस प्रेम नहीं हम स्वार्थ ही करते हैं।
प्रेम एक मन की चंचलता भी कहते हैं।
आज हम सभी अपने स्वार्थ रखते हैं।
प्रेम मोहब्बत आज बस सब शब्द बनें हैं।
एक-दूसरे को समझना कहां चाहते हैं।
हां सोच हमारी एहसास कहां रखती हैं।
आज बस प्रेम आकर्षण को कहते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र