प्रेम भाव.स्वतंत्र
** प्रेम भाव स्वतंत्र **
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प्रेम भावना है स्वतंत्र
इंसां बना जाए परतंत्र
प्रेमी ढ़ूंढता रहता कंधा
फंसता बीच है षडयंत्र
प्रेम को कहते हैं अंधा
बंद हो मस्तिष्क तंत्र
प्रीत जिसने है.लगाई
काम आए न तंत्र मत्र
न उम्र की कोई सीमा
फैलाव सदैल है सर्वत्र
चौपट हो जाता है धंधा
संपूर्ण ना हो कोई सत्र
प्रेम में हो कर वशीभूत
लिखते रहते हैं प्रेमपत्र
मनसीरत प्रेम की शैली
बहुत मुश्किल भरा जंत्र
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)