प्रेम भाव रक्षित रखो,कोई भी हो तव धर्म। प्रेम भाव रक्षित रखो,कोई भी हो तव धर्म। काज जगत हित के करो,समझो पावन मर्म।। ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम