प्रेम भरा दिल
केवल प्रेम भरा हो दिल में, हों जीवन में सुंदर किरदार
मैं ही श्रेष्ठ हूं श्रेष्ठ कर्म हैं मेरे, इस वहम से पीड़ित है इंसान।
इसी सोच के वशीभूत ही, घोर अहंकार में हर इंसान।
अवगुण अपने नज़र न आते, औरों में ऐब निरखे इंसान।
प्रीति प्रेम में महज दिखावा, सदा ही उल्टे कर्म करे इंसान।
मैं मेरी घुली है निज फ़ितरत में, उपजे न व्यवहार में प्यार।
केवल प्रेम भरा हो दिल में, हों जीवन में सुंदर किरदार।
पेंड़ का मजबूत सहारा पाके, लता वृक्ष शीश मंडराती है।
शिशु की मासूमियत पर ही, माँ निज ममता लुटाती है।
धरा कभी न परहेज़ है करती, हर ज़ख्म सहज सह जाती है।
सबकुछ सहके ये सारी सृष्टि, सदा अपना फर्ज़ निभाती है।
श्रेष्ठ जन्म को पाकर बन्दा, बिसर गया सारे संस्कार।
केवल प्रेम भरा हो दिल में, हों जीवन में सुंदर किरदार।
सोये विवेक को सत्गुरू ही जगाए, तत्वरूपी ब्रह्मज्ञान से।
प्रेमसिंधु में उतार के सत्गुरू, मिलाता रमे राम भगवान से।
किरदार व व्यवहार सिखाता, मानवीय गुण निर्माण से।
जो हो समर्पित लगाते गोता, वे बचता हरइक व्यवधान से।
प्रेमसिन्धु में हो इकरस “मोहन”, मृदुल बने ये कुल संसार।
केवल प्रेम भरा हो दिल में, हों जीवन में सुंदर किरदार