*प्रेम बूँद से जियरा ना भरता*
प्रेम बूँद से जियरा ना भरता
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बूँद – बूँद से सागर है भरता,
लहर – लहर लहराता है मनवा।
प्यास प्रीत की बढ़ती ही जाए,
प्रेम बूँद से जियरा ना भरता।
सोच सोचकर ये दिल भी हारा,
झूठ मूठ का सौदा ना चलता।
चाल ढाल भी है बदली बदली,
रंग ढंग भी तन मन है चढ़ता।
हार मान ली हम तो हैँ उनके,
बात बात पर पहरा है उनका।
ध्यान ज्ञान में छाया मनसीरत,
भाव प्यार का सूरज है चढ़ता।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)