प्रेम बनो,तब राष्ट्र, हर्षमय सद् फुलवारी
फुलवारी में फूलते, बहु रंगों के फूल।
पवन चली,चुंबन सहित,बने प्रीतिमय चूल।।
बने प्रीतिमय चूल ,सदा हँसते-इठलाते।
हिल-मिलकर सद्भाव, नेह का पाठ पढ़ाते।।
कह “नायक” कविराय, ज्ञान गह,द्वंद मदारी,
प्रेम बनो,तब राष्ट्र, हर्षमय सद् फुलवारी।।
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✓उक्त कुंडलिया को “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत किया गया है।
✓”जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
पं बृजेश कुमार नायक