प्रेम प्रतीक्षा भाग 9
प्रेम-प्रतीक्षा
भाग-9
विद्यालयी स्तर की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात सुखजीत और अंजली दोनों ने एक दूसरे से विदा ले ली थी।बेशक दोनों एक ही कॉलोनी के वासी थे,लेकिन समाज और परिवार के भय से दोनों के मिलने के अवसर नामात्र ही थे।कभी – कभार गली बाजार में दर्शन हो जाते थे और दोनों निहारते हुए दूर से ही अपनी अपनी आँखों को सेक लेते थे।
इसु बीच बारहवीं कक्षा का परिणाम भी आ गया था और आशा के अनुरूप विद्यालय में सुखजीत विज्ञान संकाय में प्रथम और अंजली द्वितीय स्थान पर रही थी।परिणाम के बहाने दोनों विद्यालय में काफी दिनों के बाद खुल कर मिल पाए थे और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा भी की थी।बातों ही बातों में अंजली ने सुखजीत को बताया था कि उसके पिता जी उसको आगे पढ़ाने के हक में नहीं थे और उसकी मम्मा के कहने पर दुरस्थ शिक्षा के लिए मान गए थे।वहीं सुखजीत ने बताया कि घरेलू आर्थिक परिस्थितियों को देखते वह भी अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए छोटी मोटी नौकरी करने की भी सोच रहा था,ताकि घरवालों की वह आरोपी सहायता कर सके।
अंजली ने दुरस्थ शिक्षा के माध्यम से बी.ए. प्रथम वर्ष के फॉर्म भर दिए थे और घर पर पर ही बच्चों को पढ़ाने का ट्यूशन का कार्य शुरू कर दिया था।इसी बीच सुखजीत का दाखिला भी जे. बी. टी. शिक्षक के कॉर्स डी.एड. में हो गया था और साथ ही उसने पार्टटाइम काम भी शुरु कर दिया था।
सुखजीत के पड़ोस से एक बच्चा ट्यूशन के लिए अंजली के पास जाता था,जिसको उसने अपना मित्र बना लिया था और उसका प्रयोग उसने डाकिए के रूप में शुरु कर दिया था और इस प्रकार दोनो के बीच प्रेम पत्रों का आदान-प्रदान शुरु हो गया था।प्रेम पत्रों के माध्यम से वो दोनों अपनी भावनाओं को व्यक्त कर लेते थे।
इसी बीच किसी तरीके से एक दिन अंजली का प्रेम पत्र उसके पिता जी के हाथों में लग गया था।उस दिन अंजली के घर पूरा हंगामा हुआ ।उसके पिता जी ने उस दिन अंजली पर हाथ भी उठाया था और उसकी मम्मी को भी इस बात का दोषी ठहराते हुए तथा इस बहुत बड़ी लापरवाही के लिए डांट फटकार लगाई थी।उस दिन अंजली के घर रात का खाना भी नहीं बना था।
बेशक सुखजीत और अंजली एक ही जाति से संबंध रखते थे,लेकिन दोनों के बीच आर्थिक असमानता होने के कारण दोनों में रिश्ता संभव नहीं था।
सुखजीत को पता चलने पर उसने घर में सब कुछ सच सच बता दिया था कि वे दोनों आपस में बहुत ज्यादा प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे।शुरु में तो उसके घर वालों ने उसको भला बुरा कहा और डाँट फटकार भी लगाई, लेकिन इकलौते लड़के की जिद्द के आगे घुटने टेकते हुए किसी दूर के रिश्तेदार को दोनों के रिश्ते की बात के लिए अंजली के घर भेज दिया था,जिसको अंजली के पिताजी ने साफ शब्दों में दो टूक जवाब दे दिया था और जिस कारण सुखजीत को आखिरी उम्मीद टूट जाने पर गहरा सदमा लगा था।
इस बीच समय की नजाकत और परिस्थितियों को देखते हुए अंजली के घरवालों ने उसके लिए योग्य वर भी ढूंढना शुरू कर दिया था ताकि समाज में होने वाली बदनामी से बचा जा सके……..।
कहानी जारी……।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)