प्रेम प्रतीक्षा भाग 6
प्रेम -प्रतीक्षा
भाग-6
उस दिन सुखजीत का घर आने को मन नहीं कर रहा था,फिर भी वह बुझे से मन के साथ अपनी जीवन कु सारी उम्मीदें मार कर निराशा के भवसागर में घिरा हुआ पीछे हटते कदमों के साथ घर आ रहा था और उसका साईकिल भी बिना चलाए स्वचालित मशीन की भांति चल रहा था।उसकी दिनचर्या में भी बदलाव आ चुका था।घर भी वह किसी के साथ ज्यादा बातचीत भी नहीं कर रहा था। वह इस बात से परेशान था कि अंजलि ने उसके साथ ऐसा क्यों किया,क्योंकि उसे किसी भी कोण से ऐसा नहीं लग था की उसके लिए अंजलि के मन में कुछ भी नहीं था और साथ ही वह यह सोच रहा था कि उसके ना करने के पीछे जरूर कोई मजबूरी रही होगी।
उधर अंजलि भी अजीबोगरीब दुविधा में थी कि सुखजीत ने उसके प्रति इतना कुछ किस आधार पर सोच लिया था…..आखिरकार वह कौनसी गलतफहमी का शिकार हो गया था,क्योंकि वह तो उसको केवल सहपाठी और मित्र तक ही समझती थी और उस बीच उसने उसको ऐसा कोई लक्षण भी नही दिया था।लेकिन उस दिन के बाद वह सुखजीत के बारे में सोचने लग गई थी और इस बात का जिक्र उसनें विजया के साथ भी किया था।विजया ने भी उसे छेड़ते हुए कह दिया था कि आखिरकार उसके भाई सुखजीत में क्या कमी थी।सर्वगुणसम्पन्न और हरफनमौला होने के साथ साथ वह शारीरक रूप से सुंदर भी बहुत था लेकिन अंजली उसे यह कह कर टाल देती थी कि उसे प्यार व्यार में नहीं पड़ना।
एक दिन अमित और सुखजीत दोनो स्कूल में एक साथ पानी पीने जा रहे थे ,तो रास्ते में अंजली और विजया भी मिली।अंजली उसे नजरअंदाज करती हुए आगे चली गई, लेकिन विजया ने रूक कर टोकता हुए कहा था कि वह कैसा था…और दिनप्ल कमजोर क्यों होता जा रहा था…. और पढाई में भी वह पिछड़ता जा रहा था।सुखजीत के स्थान पर अमित ने जवाब देते हुए कहा कि उस दिन.के बाद से सुखजीत तो उसकी सहेली के लिए भूख हड़ताल पर बैठा था…।और.वैसे उसकी सहेली ने.उसके मित्र के साथ अच्छा नहीं किया था।यह सुनकर विजया ने मुस्कराहट के साथ बस इतना ही कहा था कि वह बस थोड़ी प्रतीक्षा करे…।सब कुछ ठीक हो जाएगा। यह कहके विजया ने मानो सुखजीत को संजीवन की बुटी जीवन बाण दे दिया हो।
इस बीच लगभग सारी कक्षा को संदेह.हो गया था कि सुखजीत और अंजली दोनों के बीच कुछ हुआ था,क्योंकि जो पहले दोनों हंसते हुए बाते करते थे,अब मिलते हु एक दूसरे को नजरअंदाज कर देते थे और सभी किसी ना किसी बहाने उन दोनों को अलग अलग छेड़ मजे लेते हुए उनके जख्मों का हरा कर देते थे।
ग्यारहवीं की परीक्षा नजदीक थी।सभी विद्यार्थी अपनु परीक्षा की तैयारी में लीन थे।कुछ दिन बाद ग्याररहवीं कक्षा वाले बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों को विदाई पार्टी देने की तैयारी कर रहे थे,जो कि प्रत्येक वर्ष विद्यालय में आयोजित की जाती थी।पार्टी की तैयारी के बहाने टीम वर्क के रूप में ना चाहते हुए भी उन दोनों में अनौपचारिक बातचीत हो जाती थी।सुखजीत जो कि एख बहुत सुरीला गायक भी था,कारुकज लिज एक गीत कु तैयारी कर रहा था,शायद गीत के बहाने अपनी दिल की प्रेम की भावनाओं को व्यक्त करना चाहता हो।
आखिरकार वो दिन भी आ गया।विदाई कार्यक्रम जोर शोर से चल रहा था।सुखजीत के गाने की बारी थी।उसक़ो मंच तक पहुंचते तक निरन्तरता में तालियाँ बजाई जा रही थी,जैसे कोई बहुत बड़ा उच्चकोटि का कलाकार अपनी प्रस्तुति देने जा रहा हो।
सुखजीत ने गाना शुरू किया-
दो बातें हो सकती है, सनम तेरे इंकार की..।।
या तू जमाने से डरती है, या कीमत नहीं मेरे प्यार की….
बहुत ही सुरीली आवाज में यह गाना गाया जा रहा था।ग्याररहवीं कक्षा के विद्यार्थी कभी अंजलि तो कभी सुखजीत कु तरफ देख रहे थे..।।सभी जानते थे कि यह गीत किसके लिए गाया जा रहा था।सारे गीत के दौरान अंजली ने हया से अपनी आँखें नीचे की हुई थी.. वह भी परिस्थिति से अनभिज्ञ नहीं थी…..।
सर्वदा सर्वत्र ये जानते हैं कि बार बार चोट से तो पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं…. अंजलीने तो आखिरकार एक इंसान थी…।
सुखजीत अपना गीत पूरा कर मंच से नीचे आ गया और उसके अपने स्थान पर.बैठने तक पूरा हॉल तालियों.की गूंज से गूंज उठा।उसनै बहुत ही सुंदर प्रस्तुति दी थी और उसकी शान में तालियाँ निरन्तरता में बज रही थी………….।
कहानी जारी…….।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत