प्रेम प्रतीक्षा भाग 5
प्रेम – प्रतीक्षा
भाग -5
विजया के सम्मुख अंजलि को दिल की बात कह सुखजीत वहाँ से चल दिया और सुखजीत का प्रेम प्रस्ताव संबोधन सुन कर अंजलि के साथ साथ विजया की आँखें खुली की खुली रह गए, क्योंकि दोनो को ही सुखजीत से ऐसी कतई उम्मीद नहीं थी।अंजलि ने विजया को बस इतना ही.कहा था कि ये सुखजीत को ये अचानक क्या हो गया और वह ये किस प्रकार की बहकी बहकी बातें कर रहा था और विजया ने भी सिर हिलाते और मुँह बनाते हुए बस इतना ही कहा था …..पता नही…..।
उसके बात कक्षा के अन्य विद्यार्थी आने पर दोनों ने ही अपने मुख के हाव भावों को बदलते हे वार्तालाप का विषय बदल दिया था और फिर दोनों प्रार्थना सभा के लिए चले गए, लेकिन अंजलि के हंसमुखी रहने वाले मुखमंडल पर उदासी और निराशा की घनी परत छा गई थी।
उधर सुखजीत भी अपने दिल की भावनाओं को व्यक्त कर कुछ हल्का महसूस कर रहा था,लेकिन वह भविष्य के परिणाम को देखते हुए काफी घबराया हुआ था,जिसे कि अमित ने आसानी से पढ़ लिया था।प्रार्थना सभा से वापिसी के दौरान अमित ने सुखजीत को हल्की कोहनी मारते हुए पूछ लिया था कि ओए सुखजीत तुमने अपना काम कर दिया क्या…… क्या जवाब दिया उसने..।लेकिन सुखजीत था, लेकिन पानी पीने के बहाने जाते समय सुखजीत ने अमित को सब कुछ बता दिया था।डरते हुए वह उससे पूछ रहा था अब आगे क्या होगा और अमित ने भी बड़ी चतुराई से कह दिया था….होना क्या था….जो करना है अब अब शेरनी ने करना है…. लेकिन आश्वासन देते हुए यह भी कह दिया था कि वह चिंता ना करे….सब कुछ. ठीक ह़ोगा।
उधर अंजलि बहुत परेशान थी और चिंताग्रस्त थी और उसका चेहरा गुस्से से लाल था, क्योंकि उसे सुखजीत से ऐसी उम्मीद नहीं थी।उसका सुखजीत के प्रति व्यवहार बदला हुआ था और मौके की तलाक में थी.. सुखजीत से बात करने के लिए।उधर सुखजीत भी अंजलि से आँख नही मिला पा रहा था।शिक्षक आते गए और पढ़ाते गए, लेकिन दोनों की स्थिति सामान्य नही थी।
.क्योंकि उस दिन शनिवार का दिन था और आधी छुट्टी के बाद विद्यालय के सभी विद्यार्थियों को बड़े हॉल में एकत्रित होने के लिए कहा गया था ,क्योंकि कि हर शनिवार की तरह बालसभा का आयोजन किया जाना था।
कक्षा के सभी विद्यार्थी जा चुके थे,लेकिन विजया ने सुखजीत को कक्षा में ही रुकने का इशारा कर दिया था।अब कक्षा में सुखजीत, अमित,अंजलि और विजया ये चारों शेष थे। विजया ने बात शुरु करते हुए कहा -.।।सुखजीत तुमने ये क्या किया और अंजलि तेरे से बहुत नाराज …..।
और आगे की बात को अंजलि ने संभालते हुए कहा-
…. सुखजीत तुमने यह सब क्या समझ लिया तुम किह गलतफहमी का शिकार हो गए ….मेरे मन में तेरे प्रति ऐसी कोई बात नही…मैं तो तुम्हे बस अपना सच्चा और अच्छा मित्र और सहपाठी समझती हूँ…तुमने यह सब सोच भी कैसे लिया…मैं आपका बहुत आदर करती हूँ……और यदि यह सब…इन सभी बातों का मेरे घर पता लग गया तो मेरे पापा तो मुझे जिंदा ही मार देंगे और मेरी पढाई भी छुड़वा देंगे….तूने मेरा बहुत दिल दुखाया है… ।
और यह सब कहकर रोते हूए विजया के साथ बालसभा के लिए हॉल में चली गई।
.और उधर सुखजीत की स्थिति ऐसी थी मानो काटो तो खून नही… उसका सर्वस्व एक ही झटके में लुट गया हो और.वह बुरी तरह से बिलख बिलख कर रो रहा था और अमित एक सच्चे,अच्छे और समझदार मित्र की भांति सहारा देते हुए उसे चुप कराते हुए ढांढस बंधाने की नाकाम कोशिश कर रहा था और कुछ देर बाद नल से हाथ मुंह धोकर बुझे हुए मन से बालसभा के लिए हॉल में चले गए।वह दिन सुखजीत के लिए बहुत ही दुखदायी और निराशा भरा रहा,क्योंकि उसके प्रेम का महल ढह जो गया था……….।
कहानी जारी……।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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