प्रेम प्रतीक्षा भाग 4
प्रेम- प्रतीक्षा
भाग -4
अगले दिन आदतानुसार सुखजीत समय से पहले स्कूल पहुंच गया,लेकिन वहाँ यह देख कर हैरान हो गया कि अंजलि अपनी सहेली विजया के साथ उससे भी पहले कक्षाकक्ष के बाहर खड़ी थी।उसे देखते ही मुस्कराते हुए अंजलि ने उसे कहा… हाय ,कैसे हो ….?
यह सुनते ही सुखजीत ने भी नजरें नीचे रखते हुए जवाब में धीरे से शर्माते हुए कहा….जी ठीक हूँ..।
इससे ज्यादा उनकी ओर कोई बात नहीं हुई,लेकिन सुखजीत के मन में प्रेम का बीज अंकुरित हो चुका था,क्योंकि आकर्षण ना चाहते हुए अपनी ओर आकर्षित कर ही लेता है ।कुछ देर बाद सभी विद्यार्थी आ गए और प्रार्थना सभा में चले गए। कभी कभार अंजलि और सुखजीत आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे थे नॉट बुक ले लिया करते थे।अंजलि बहुत ज्यादा बातूनी भी थी…खाली पिरीयड में वह अपनी सहेलियों से खूब हंसी ठिठौली किया करती थी और वहीं सुखजीत चोर नजरों से उसकी सुंदरता को निहार लिया करता था,जिसको उसका घनिष्ठ मित्र अमित पकड़ लिया करता था,क्योंकि अमित को सुखजीत ने अपने दिल की बात बता रखी थी।सुखजीत और अंजलि के सहेली विजया के संबंध अच्छे थे और वह विजया को अपनी धर्मबहन मानता था।जो कि रक्षाबंधन पर उसकी कलाई पर राखी भी बाँधती थी।
सुखजीत जो अपनी किताब और नॉट बुक में सवयं के नाम के साथ अंजलि का नाम कोड में लिखता र ता था और फिर देखकर खुश हो जाता था।अमित ने उसको सुझाव दिया था कि वह अंंजलि को अपने दिल की बात बता दे और इसका उसने तरीका भी सुझा दिया था कि वह विजया के हाथों अपना अंजलि के नाम प्रेम पत्र उस तक पहुंचा दे और अमित के इस तरीके से सहमत हो गया था और दोनों ने इस योजना पर समय और स्थिति का आंकलन करते हुए काम करना भी शुरू कर दिया था।
सुखजीत ने अमित की सहायता से प्रेम पत्र तो तैयार कर लिया था, लेकिन वह उस पत्र को अंजलि तक नहीं पहुंचा पा रहा था,क्योंकि अंजलि और विजया साथ साथ रहती थी और विजया को अकेले ना पा कर सुखजीत अपनी योजना को अमलीजामा पहुंचाने में असमर्थ था।
एक दिन क्या हुआ कि अंजलि कक्षा इंचार्ज को अगले दिन की छुट्टी के लिज प्रार्थना पत्र दे रही थी, जिसकी सूचना अमित ने एक योग्य गुप्तचर की भांति खुशी खुशी सुखजीत को बता दी थी और अमित ने अगले दिन का फायदा उठाने को भी कह दिया था कि सुखजीत इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता था,योजना को साकार करने का।….और साथ ही मौके पर चौका मारने को कह दिया था और सुखजीत ने भी घबराहट के साथ अपनी सहमति जता दी थी।
रात को सुखजीत को नींद नहीं आ रही थी और वह बैचेन के साथ बिस्तर पर करवटें बदल रहा था।उसको बैचेन के साथ घबराहट भी हो रही थी।इतना परेशान तो वह परीक्षाओं के दौरान भी नहीं हुआ था।
आखिरकार अगली सुबह एक नई आशा और उम्र के साथ हुई…..और आज वह कुछ ओर जल्दी स्कूल चला गया जैसाकि वह कोई बड़ी जंग जीतने जा रहा हो…..और प्रेम से बड़ी जंग कोई हो भी नहीं सकती ।
वह स्कूल पहुंचा… लेकिन यह क्या वह अंजलि को विजया के साथ स्कूल में देखकर स्तब्ध रह गया और निराशा में डूब गया ,क्योंकि सब.कुछ उसकी आशा के विपरित हुआ…. लेकिन सुखजीत हार मानने वालों में नहीं था….आज तो वह एक दृढ संकल्पित हो आर या पार की लड़ाई लड़ने आया था।
उस समय कक्षाकक्ष में वे तीनों ही थे-वह,अंजलि और विजया।इससे अच्छा मौका नही मिल सकता था।जैसे ही अंजलि ने सुखजीत को विश किया ..।सुखजीत अपनी इंद्रियों को नियंत्रिण करते हुए हिम्मत जुटा कर विजया को नाम से संबोधित करते हुए कहा-
विजया….एक मिनट…मे..री…बात सुनना….
विजया-…हाँ सुखजीत… बोलो …क्या बात है…कुछ परेशानी में ह़ो.क्या….।
उसने उसके चेहरे के उड़े हुए रंग को भांप लिया था..।
सुखजीत-…विजया …मैं आपसे अकेले में बात करना…..।
विजया–नहीं जो कहना हैं यही अंजलि के सामने हु कह दो..।
शायद वह भी सुखजीत कु मनोस्थिति को समझ श नहीं पा रही थी।
सुखजीत ने हिम्मत कर आँखें नीचे करते हुए कहा कि विजया दरअसल वह अंजलि को बहुत ज्यादा प्यार….।वह भय और घबराहट में प्रेम पत्र वाली योजना को भूल गया और साक्षात ही आधी अधूरी बात.कहकर कक्षि कक्ष से बाहर परिणाम की चिंता किए बिना बाहर आ गया और अब कक्षा के अन्य विद्यार्थी भी चुके थे…।
कहानी जारी..।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत