प्रेम प्रतीक्षा भाग 11
प्रेम प्रतीक्षा
भाग-11
अंजली के होने वाले दुल्हे की मृत्यु का समाचार सुन कर पूरे घर और रिश्तेदारों के बीच मातम का माहोल छा गया था और अंजली के सीने पर तो जैसे वज्राघात हुआ हो और जिसने उसके सजीव शरीर को निर्जीव शरीर में तबदील कर दिया हो और उसकी जिह्वा को तो जैसे लकवा मार गया हो।उसके अर्श पर देखे नवजीवन के सारे स्वप्न टूट कर फर्श पर आ गए हों।यह दुनिया भी दो मुंहे सांप की तरह होती है ,जो आपके सामने तो आपकी प्रशंसा या ढांढस बंधाती है और पीठ पीछे से आलोचना करती है।इसी सुर में उसकी पीठ पीछे लोग यही बात करते थे कि उस अभागिन ने तो ससुराल पहुंचने से पहले ही अपने होने वाले पति की जान को निगल लिया। इस अंधविश्वासी,अशिक्षित और.बुद्धिहीन लोगो को भला कौन समझाए कि इसमें बेचारी अंजली का क्या दोष है, होनी अनहोनी को भला कौन टाल सकता है।
. उधर सुखजीत को जब इस बुरी खबर का पता चला तो उसके तो जैसे पैरों तले जमीन ही खिसक गई हो।वह अंजली के लिए फिर से बहुत रोया ।लेकिन बार बार उसे उसे अपनी खुद.की यही बात याद आ रही थी जब उसने अंजली के लिए खुदा से मनोकामना की थी,कि यदि अंजली की शादी कहीं और हो तो वह जाते ही विधवा हो जाए।उसे नही पता था कि भगवान उसकी यह बात सुन लेगा,क्योंकि उसने त़ यह बाय दुख में कही थी।अब तो वह उसके लिए ओर ज्यादातर चिंतित हो गया था।
धीरे धीरे समय बीतता गया और इस घटना को बीते भी सात महीने हो गए थे।सुखजीत के घरवाले उस पर शादी करने का दवाब बना रहे थे।आखिरकार सुखजीत ने दबी जुबान से अपनी माता जी से कहि कि यदि वो मेरी शादी करना चाहते है तो वे एक बार अंजली के माता पिताजी जी. से बात कर ले। क्योंकि वह तो केवल अंजली से ही शादी करना चाहता था।
. सुखजीत की मम्मी ने जब यह बात अपने पति को बताई तो वह कपड़ों से बाहर हो गया और सुखजीत को बहुत भला बुरा कहा और साथ ही यह भी कहा कि वह वहाँ जाकर बार बार अपनी बेईज्ज़ती नहीं करवा सकता। उसकी भी समाज में ईज्जत थी।
उधर.अंजली के रिश्तेदारों ने अंजली की शादी के लिए उसके घर वालों पर.दवाब दे रहे थे और साथ ही यह भी कह रहे थे कि अभी अंजली की उम्र.ही क्या थी ंर कब तक जवान बेटी को घर पर ही रखोगे और तुम्हारे संसार से चले जाने के बाद उसका क्या होगा, लेकिन अंजली शादी के लिए तैयार नही थी और वह दिन रात बुझी बुझी सी रहती थी।
उधर सुखजीत के माता पिता भी मरते क्या नहीं करते और उन्होने इकलौते पुत्र की इच्छा के समक्ष झुकते हुए वे सुखजीत की अंजली से शादी के लिए तैयार हो गए थे और उन्होने अपने किसी दूर के रिश्तेदार के जिम्मे यह काम लगा दिया था, जोकि अंजली के पिया के नजदीक था।
जब उस रिश्तेदार के माध्यम से यह बात अंजली के पिताजी जी से की गई तो उसने सहर्ष ही शादी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था ,क्योंकि वह भी अपनी बेटी के लिए चिंतित था और उसने अपनी पिछली बातों और व्यवहार के लिए सुखजीत के पिताजी से क्षमा मांगी।सुखजीत के पिताजी का भी गुस्सा ठंडा पड़ गया था और दोनों समधी घुट कर एक दूसरे के गले मिले।
उधर सुखजीत की खुशी का.ठिकाना नहीं रहा और वह फूला नहीं समा रहा था और वह अपने भगवान के आगे आँख बंद कर दोनों हाथ जोड़कर नतमस्तक हो गया था।
अंजली का मुरझाया चेहरा सुर्ख गुलाब की तरह खिल गया था और उसे तो ऐसा लग रहा थि जैसे भगवान ने उसे नया जीवन मिल गया हो और चस दिन वह अपनी माँ के गले लगकर खूब रोई और उसकी माँ भी….।
. और अंत में दोनों की शादी हो गई और दोनों ने अपने सच्चे प्यार से भगवान को भी उनको मिलाने के लिए मजबूर कर दिया था।शादी की प्रथम रात्रि के प्रथम मिलन पर सुखजीत और अंजली दोनों एक दूसरे के गले लग कर बहुत रोये…..और दोनों को यह कतई यकीन ही नहीं ह़ रहा था कि दोनों अब सदा सदा के लिए एक दूसरे की बाहों में हैं……. कुदरत तेरे रंग तू ही जाने….।
कहानी समाप्त……।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)