प्रेम प्रतीक्षा भाग 10
*************प्रेम प्रतीक्षा*****************
**************भाग 10*******************
जैसा कि सुखजीत और अंजली के प्रेम प्रसंग की पोल पट्टी खुल चुकी थी और अब अवरोध के बाद दोनों के रास्ते अलग अलग हो गए थे।दोनों ही मायूस हो गए थे और लेकिन सच्चाई यह थी कि दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे।
उधर सुखजीत ने परिस्थितियों को समझते हुए अपना पुरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया था और सरकारी नौकरी के लिए कोशिशे तेज खर दी थी।मन ही मन वह सोचता था कि यदि अंजली उसकी नहीं तो वह किसी ओर की भी ना हो,उस पर केवल उसी का ही आधिपत्य हो,जिसके लिए कई बार वह ईश्वर से नकारात्मक प्रार्थना कर बैठता था और उसके मन में यह विकल्प पैदा हो जाता था कि यदि अंजली की शादी कहीं ओर हो गई तो वह शादी के बाद विधवा हो जाए और तब जब वह उस परिस्थिति में उसके घरवाले से हाथ मांगेगा तो वो उस स्थिति में समय और परिस्थिति की नजाकत को समझते और परखते हुए खुशी खुशी स्वेच्छा से उसका हाथ उसके हाथों में दे देंगे।इस प्रकार के नकारात्मक आशावादी विचार उसके मन में आते रहते थे।
इसी बीच अंजली के घरवालों ने अंजली का रिश्ता भी तय कर दिया था।लड़का किसी निजी कंपनी में मैनेजर था और अच्छे और अमीर चराने से संबंध रखता था। अंजली ने बुझे मन से परिस्थितियों से समझौता कर लिया था और उसकी माँ उसको समझाती रहती थी कि वह उस घर में जहाँ उसका रिश्ता हुआ था,वहाँ पर राज करेगी।उसकी मन.की.व्यथा को समझते हुए वह उसे कहती थी कि औरतों को तो पुरुष प्रधान समाज में अपनी इच्छाओं को मार कर जीवन निर्वहन करना पड़ता है।
उधर जिस दिन सुखजीत ने अंजली के रिश्ते की खबर सुनी उसी दिन उसे सरकारी शिक्षा विभाग से जे.बी.टी शिक्षक के रूप में नियुक्ति पत्र प्राप्त हुआ था।
उसे खुशी कम दुख ज्यादा हो रहा था,क्योंकि जिसको उसने जी जान से ज्यादा चाहा अब वह किसी ओर की अमानत बन गई थी।अंजली के साथ जिंदगी जीने के जो सुपने उसने देखे थे,वे सब आइन्स्टीन की तरह टूट कर बिखर गए थे।उस रात वह बिखल बिखल कर बहुत रोया था।
सुखजीत ने पडौस.के गाँव के प्राथमिक विद्यालय में जे .बी.टी. शिक्षक के रूप में कार्यग्रहण कर लिया था।उसके घर वालों ने उस पर शादी करने का दवाब डालना शुरु कर दिया था, जिसे उसने साफ शब्दों में मना कर दिया था, जिस कारण उसकी माता जी बहुत दुखी रहती थी।
आखिरकार वो दिन भी आ गया ,जब अंजली कु शादी तय कर दी गई।शादी की जोर शोर से तैयारियां भी शुरू हो गई।खरीददारी वगैरह भी पूरी हो गई और दूर व नजदीक के रिश्तेदार भी शादी में शामिल होने के लिए उसके घर पर आ गए थे।हलवाई की कढ़ाई भी चढ़ा दी थी।.महिला संगीत भी हो रहा था,लेकिन अंजली के चेहरा पर तो जैसे मातम छाया हो।वह निराश और उदास थी।वह तो बस अपने पितामह की आज्ञा का अनुपालन कर रही थीं।
रात का समय था।रिश्तेदार, नाती,संबंधी सभी डी.जे. पर नृत्य वाले गानों पर थिरक रहे थे। अंजली के माता पिता ने सुबह की तैयारियां पुरी कर ली थी।सभी की ड्यूटियां तय कर दी थी।
इसी बीच अंजली के पिताजी के फोन पर लड़के वालों का फोन आया,जिसे सुनकर अंजली के पिताजी के होश उड़ गए थे और वह निढ़ाल हो कर नीचे गिर गया।
पता चला कि जो लड़का दुल्हा बन कर कल बारात ले कर अंजली को ब्याहने आ रहा था,उसकी अचानक हृदयाघात से उसकी मृत्यु हो गई थी।
डी.जे. बंद करवा दिया गया और सारा खुशियों भरा माहौल गमगीन हो गया था और घर में मातम छा गया था।जब यह बात अंजली को पता चली तो वह भी बिना रोए शिला सी बन जिंदा लाश में परवर्तित हो गई थु और ऊसकी माँ का तो रो रो कर बुरा हाल था, किसी न किसी तरह रिश्तेदार उसके माता पिता पर ढांढस बंधा रहे थे।
कुदरत के रंग देखो,कितनी तीव्रता से परिस्थितियां बदल जाती हैं।वहाँ सभु मौजूद लोग बस यही कह रहे थे…………।खुदा के रंग खुदा ही जाने…….पता नहीं भगवान किन रंगों में राजी……..।
कहानी जारी………….।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत