प्रेम – पूजा
सुमेधा ग्राम में सुरेखा का बहुत ही बड़ा संयुक्त परिवार हैं, जो तीन पीढ़ियों से चला आ रहा हैं, जो अब जाकर अलग – अलग एकांकी परिवार में विभक्त हुआ हैं, लेकिन पूरा परिवार अब भी एक साथ एकत्र होकर सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम संयुक्त होकर करते हैं।
सुहानी बारहवीं की परीक्षा देने अपने ग्राम माणिकधेनु से सुमेधा ग्राम अपने मौसी के यहाँ ग्रीष्म ऋतु में आई हुई थीं।
सुरेखा के परिवार में सुहानी के हम उम्र के कई लड़के लड़कियाँ हैं, जो आपस में एक दूसरे से सप्रेम भाव से रहते हैं।
श्याम सलोनी लावण्य रूप में सुहानी अपने शैशव और वय: अवस्था में परिलक्षित हो रहीं हो, ऐसी अवस्था में युवा और युवतियों का एक दूसरे के तरफ आकर्षण स्वभाविक हैं, अनिकेत जो सुरेखा के छोटे ससुर के बड़े लड़के का छोटा पुत्र हैं वह भी बारहवीं के परीक्षा उसी वर्ष परीक्षा दे रहा था, वह सुहानी को देख कर कब सुहानी के वय: अवस्था पर मुग्ध हो गया इसका उसे भान ही नहीं रहा।
सुहानी और अनिकेत दोनों एक ही समान रंग रूप में ढले मालूम होते हैं, लेकिन सुहानी अनिकेत से थोड़ी दिखने में साफ थी, अनिकेत भी सुंदर युवा अवस्था में अपने शैशव से वय: अवस्था के प्रवेश द्वार पर दस युवाओं में अपने वय: अवस्था द्वार पर खड़ा हो युवतियों को अपने तरफ आकर्षित करने का निमंत्रण दे रहा हो।
सुहानी लंबी वय: अवस्था के प्रवेश द्वार पर खड़ी होकर वय: और तरुण अवस्था में प्रवेश युवकों को अपने तरफ आकर्षित करने में मानो किसी स्वर्ग के अप्सरा से कम न हो, सांवली सलोनी रूप पर चंद्रमा का प्रकाश पड़ जाए तो मानों उसके चेहरे से तेज आभा देखकर अच्छे-अच्छे युवक अपना सर्वत्र निछावर करने को तत्पर हो जाए।
सुहानी के रूप लावण्य की सजावट उसकी वय: अवस्था पर खड़ी तरूण्य रूप रंग दे रहे हो, भौंहे श्याम मेघ रंग सी रंगी तिरछी, माथे पर चमक, कपोल पर मंद – मंद मुस्कान, कपोल पर लटकते श्याम रंग घुंघराले केश नवयुवाओं को अपने तरफ गुरुत्वाकर्षण बल के समान, उनका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहीं हो, सुंदर श्रावणेंदियो में सुंदर बाली, कमल पंखुड़ियों के समान कोमल मुलायम अधर, लुभावनी नैनों के भौंहे, चेहरे पर मंद – मंद प्यारी सी मुस्कान क्यों ना किसी तरूण को अपनी तरफ आकर्षित करें।
अनिकेत भी सुहानी के वय: अवस्था पर मुग्ध हो गया कहा गया हैं कि जो ज्वालाएं शीघ्रता से प्रज्ज्वलित रूप ग्रहण करती हैं, वह ज्वालाएं अति शीघ्र ही मंद हो शांत हो जाया करती हैं, ऐसा ही कुछ दृश्य सुहानी और अनिकेत के परिणय प्रेम का भी हुआ।
दोनों एक दिन छत पर एक दूसरे से अपने प्रेम का इजहार किया, दोनों एक दूसरे को प्रकृति सान्निध्य गोद में पली एक – एक वस्तु की उपमा देकर एक दूसरे की सराहना करने से नहीं थक रहे थे, यह दृश्य देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा हैं कि दोनों युगल जोड़ी एक दूसरे हेतु हैं, इनका आकर्षण तो जैसे रति और काम को भी पराजित कर रहे हो।
प्रेम का उद्धृत होना तभी संभव हैं जब इसमें श्रृंगार का विप्रलंब (विरह) का संयोग होता हैं।
ग्रीष्म ऋतु अवकाश पूर्ण होने के बाद सुहानी अपने ग्राम माणिकधेनु जाने को तैयार होती हैं, विरह का ऐसा संयोग जिसे वहीं स्वीकार कर सकता हैं जो सच्चे प्रेम तपस्या को फलीभूत करना चाहता हो।
सुहानी विदा होते हुए ऐसी भाव विभोर हो उठी जैसे उसे अपने प्रीतम से हमेशा के लिए छोड़ कर जाना हो, व्याकुलता उसके चेहरे पर स्पष्ट झलक रहीं हो, उसे उसकी यादों का डर भी अंत: स्थल में उसे दबाए जा रहीं हैं, वह जाते हुए बेचैन हो जा रहीं हैं, वह अनिकेत को अपने गले से लगाकर अपने सभी मनो वेदना भाव उससे प्रकट कर अपने मन को हल्का करना चाह रहीं हैं, लेकिन वह विवश हैं, पूरे परिवार के सामने कैसे अनिकेत को गले लगाकर अपने वेदना का प्रसाद साझा कर सकें, जाते – जाते सुहानी ने अनिकेत को अपना हाथ हिलाते हुए सुमेधा ग्राम में सुरेखा परिवार से खास अनिकेत का स्नेह प्रेम धन लेकर विदा होती हैं।
अनिकेत जो चंचल स्वभाव वाला अब शांत चित सुहानी की यादों में डूबा हुआ, एकांत में अपने चक्षुओं को गिला करता रहता था, दोनों दूरभाष यंत्र द्वारा घंटों तक एक दूसरे से अपने मन की बातें किया करते थे, प्रेम कोई घर में कि रोटी नहीं हैं, जिसे छुपाया जा सकता हैं यह तो अपने आप ही उत्स्रुत हो सबके सम्मुख प्रस्तुत हो जाता हैं।
सुहानी और अनिकेत का प्रेम दोनों परिवारों को मालूम हो जाता हैं, दोनों परिवार शादी के लिए तैयार हो जाते हैं, लेकिन रिश्ता संपन्न नहीं हो पाता हैं, अनिकेत के बड़े चाचा और चाची जी को यह रिश्ता स्वीकार नहीं था, जिसके कारण अनिकेत सुहानी का रिश्ता विवाह बंधन में नहीं बंध सका।
अनिकेत और सुहानी परिवार छोड़कर न्यायालय में शादी तक का कार्यक्रम सारणी तैयार कर लिया था लेकिन ग्राम के मितेश जो अनिकेत का हम उम्र साथी अपने मित्र अनिकेत से यहीं कहा प्रेम त्याग, समर्पण, बलिदान माँगता हैं, तुम दोनों भाग कर अगर विवाह कर भी लिया तो तुम्हारा वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहेगा, क्या तुम अपने कुल पर कलंक लगाकर अपने पूर्वजों, अपने परिवार रिश्तेदार और अपने ग्राम वासियों को जवाब दे पाओगे, उनके मान – सम्मान उनके आत्मा को ठेस पहुँचाओगे, एक नहीं दोनों परिवार पर कलंक लगेगा, माणिकधेनु में तुम्हारे साथ – साथ सुमेधा ग्राम का नाम भी बदनाम होगा क्या तुम यहीं चाहते हो एक लड़की के प्रेम में पड़कर अपना सर्वत्र कलंकित कर जाओ, जब भगवान श्री कृष्ण और राधा का मिलन नहीं हुआ और प्रेमियों का कहाँ से होगा, प्रेम हमेशा जीवित रहता हैं, जब तक जीओगे तब तक, प्रेम पवित्र होता हैं, साथ में रहकर ही नहीं दूर रहकर ही प्रेम और उसके स्नेह पूर्ण भाव को महसूस कर पाओगे, जब तुम किसी कठिन परिस्थिति में रहोगे, उस समय तुमको तुम्हारा यहीं प्रेम त्याग समर्पण तुमको रक्षित करने तुम्हारे आत्मा में आत्म बल का ऊर्जा रूपी प्रसाद भर देगा।
अनिकेत भाग कर शादी करने का विचार अपने मन से निकाल दिया और कुछ ही महीने बाद सुहानी का विवाह अनिकेत के पटीदार के रिश्ता में संपन्न हुआ, दोनों एक दूसरे से तो बातें तो करना चाहते हैं लेकिन परिवार मर्यादा समाज इसका गवाही उन दोनों को नहीं देता और दोनों अपने – अपने जीवन में अपने गंतव्य मार्ग पर अग्रसर हो अपना कर्त्तव्य निर्वाह में लग गए।