प्रेम पीड़ा
ईश्क की आँधी तुफान संग
अंबर में प्रेम मेघ मंडराते हैं
अनुरागी बूंदों में जब बरसेंगे
चातक कब से आस लगाए हैं
यह झुकी झुकी निगाहें हैं जो
कुछ कहती हैं तनिक बुझो तो
प्रेम जाल में हैं जो फँसी फँसी
अहेरी अहेर में फँसाने आए हैं
प्रणय तीव्र हवा का झोंका सा
पल भर में जो गुजर जाता है
मिलता है तो कभी तरसाता हैं
आँखों में स्वप्न खूब सजाए हैं
गुलिस्तां है यहाँ खिला खिला
महकान में मधु हैं मिला मिला
प्रेम सुंदर उपवन है फूलों का
रंग बिरंगे पुष्प जो महकाए हैं
ये आँसू आँखों में शशिप्रभा से
बह कर कपोलों पर चमकते हैं
जब याद प्रियतम की आती है
रहते हृदय में ये अग्न लगाए है
दिन चढ़ता है और ढल जाता है
मन का सबर बाँध टूट जाता है
शाम ढले ,रात को चाँद निकले
मन भटके,विरह बहुत सताए हैं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत