प्रेम पर होती टिकी हर देश की बुनियाद है
कैद हैं धनहीन तो, जो सेठ है,आजाद है
झुग्गियों की लाश पर बनता यहाँ प्रासाद है
थाम कर दिल मौन कोयल डाल पर बैठी हुई,
तीर लेकर हर जगह बैठा हुआ सय्याद है
भाईचारा प्रेम सब बातें किताबी हो गईं,
हो रही बेघर मनुजता, फैलता अतिवाद है
जन्म रोजाना यहाँ पर ले रहे राक्षस कई,
पल रहीं हैं होलिकाएँ जल रहा प्रहलाद है
है समुन्दर तो लबालब, पर नदी सूखी हुई,
और हम सब कह रहे हैं ये धरा आबाद है.
घात से प्रतिघात से हल, मित्र निकलेगा नहीं.
युद्ध से बेहतर हमेशा ही रहा संवाद है.
खत्म होना चाहिए अब नफरतों का सिलसिला,
प्रेम पर होती टिकी हर देश की बुनियाद है