प्रेम पर्व आया सखी
प्रेम पर्व आया सखी, मन में उठे तरंग ।
छलक रहा है सोम रस, मादकता के संग।। १
अंग- अंग को तर रहा, मदहोशी का रंग।
पोर पोर ज्वाला भरा, मृग तृष्णा के संग।। २
प्रणय पिपासा कामना, फड़क रहा है अंग।
भाव भंगिमाएँ सरस, मोहित हुए अनंग।। ३
नयनों में मदिरा भरा, अंतर प्रणय तरंग।
ढाई आखर प्रेम में, अमिट सत्य का रंग।। ४
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली