प्रेम निवेदन
क्यों भूल जाता हूं मैं हकीकत
जब सामने तुम होते हो मेरे
तय करने है बहुत फासले अभी
दिल में जगह बनाने को तेरे।।
खिलता है जो फूल शाही बाग में
तू तो वो फूल लगता है मुझे
मैं तो ठहरा पहाड़ी रास्ते की धूल
तुम ही बताओ कैसे पाऊंगा तुझे।।
होता है इश्क भी जाने क्यों ऐसा
देखता है वो सिर्फ दिल को
नज़र आता है तेरी आंखों में प्यार
तुम जब भी देखते हो मुझको।।
कब बताओगे मुझे खुद तुम
दिल में जगह दोगे या नहीं
किस्मत खुलेगी अब मेरी भी
या मिलेगी मुझे कभी तू नहीं।।
इसी उधेड़ बुन में जला जा रहा हूं
तू कब समझेगा जज़्बातों को मेरे
अपना बनाएगा कब तू भी मुझे
मेरी मेंहदी होगी कब हाथों में तेरे।।
प्यार करता हूं तुमसे कितना
तुमसे ये कहा भी नहीं जा रहा
ये कैसी हो गई है हालत मेरी
दूर तुमसे रहा भी नहीं जा रहा।।
अब थाम लो हाथों को मेरे तुम
मुझे राहत मिल जायेगी
होगी मेरी हर तमन्ना पूरी जब
तू मेरी ज़िंदगी में आएगी।।