//…प्रेम-निवेदन…//
//…प्रेम-निवेदन…//
दिल में लगी है ,
आग मेरे
तुम सावन ,
बन जाओ ना…!
तन प्यासा है ,
है मन प्यासा
तुम प्रेम सुधा ,
बरसाओ ना…!
मंजिल से ,
मैं दूर खड़ा
क्यों लगता है ,
मुझको ऐसा…?
मैं उलझा हूं ,
पर्वत से ?
तुम रास्ता ,
बन जाओ ना…!
टूटी हैं क्यों ,
कलियां सारी
खुशबू भी है ,
खोई सी…!
पतझड़ है यह ,
दिल का गुलशन
तुम इसे ,
महकाओ ना…!
रात हुई पर ,
चांद ना निकला
सुबह का सूरज
किसने है देखा…!
अंधियारा है ,
जीवन में मेरे
तुम उजियारा
बन जाओ ना…!
चिन्ता नेताम ” मन ”
डोंगरगांव ( छत्तीसगढ़ )