प्रेम नहीं ‘प्रेमी’ हो जाना
प्रेम हुआ तो जाना हमने
प्रेम नहीं होता है वैसा
हम समझ रहे थे इसको जैसा ।
प्रेम नहीं है क्रिया सकर्मक
प्रेम नहीं है क्रिया अकर्मक
प्रेम नहीं है भूख प्यास सा
प्रेम नहीं है क्षणिक लालसा
प्रेम नहीं है बन्धन में रहना
प्रेम नहीं है मुक्ति कामना
प्रेम नहीं व्यवहार जगत का
प्रेम नहीं व्यापार विरति का
प्रेम नहीं है कुछ भी पाना
प्रेम नहीं “प्रेमी” हो जाना ।
प्रेम का मतलब प्रिय में खोना
अपना किंचित बोध न होना
प्रेम का मतलब क्रोध न आना
प्रेम का मतलब अहम मिटाना
प्रेम का मतलब हूक हिया की
प्रेम का मतलब याद पिया की
प्रेम का मतलब चुप हो जाना
चुपके-चुपके अश्रु बहाना…
…शिवकुमार बिलगरामी